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सेठ गोविंद दास
सेठ गोविन्द दास का जन्म 16 अक्टूबर, 1896 को एक सम्पन्न मारवाड़ी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम जीवन दास था। सेठ गोविन्द दास के दादा राजा गोकुल दास बहुत बड़े व्यापारी थे।
गोविन्द दास ने घर पर ही शिक्षा ग्रहण की। आपने बीस वर्ष की आयु में सार्वजनिक जीवन आरंभ किया। 1923 में केन्द्रीय सभा के लिए चुने गए। आपने महात्मा गांधी के सभी आन्दोलनों में भाग लिया तथा अनेक बार जेल गये। सेठ गोविंद दास हिन्दी के अनन्य साधक, भारतीय संस्कृति में अटल विश्वास रखने वाले, कला-मर्मज्ञ तथा विपुल मात्रा में साहित्य-रचना करने वाले, हिन्दी के उत्कृष्ट नाट्यकार थे। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक जीवन में अत्यंत स्वच्छ, नीति-व्यवहार कुशल, सुलझे हुए राजनीतिज्ञ भी थे। अंग्रेजी भाषा, साहित्य और संस्कृति ही नहीं, स्केटिंग, नृत्य, घुड़सवारी का भी शौक रखते थे।
गांधी जी के असहयोग आंदोलन का युवा गोविंद दास पर गहरा प्रभाव पड़ा और वैभवशाली जीवन का परित्याग कर वे दीन-दुखियों की सेवा करने के लिए सेवादल में सम्मिलित हो गए। दर-दर की ख़ाक छानी, जेल गए, जुर्माना भुगता और सरकार से
बगावत के कारण पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकार भी गंवाया।
एक कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ सेठ गोविन्द दास एक जाने-माने रचनाकार भी थे। उन्होंने हिन्दी में सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। उनके नाटकों का कैनवास भारतीय पौराणिक कलाओं और इतिहास की सम्पूर्ण अवधि को आच्छादित करता है। सेठ जी पर देवकीनंदन खत्री के तिलस्मी उपन्यासों जैसे 'चन्द्रकांता संतति' का प्रभाव था और उसी की तर्ज पर उन्होंने 'चंपावती', 'कृष्णलता' और 'सोमलता' नामक उपन्यास लिखे। ये उपन्यास गोविन्द दास ने मात्र सोलह वर्ष की किशोरावस्था में लिखे थे।
पाश्चात्य साहित्य में शेक्सपीयर का प्रभाव सेठ जी पर देखा जा सकता है। शेक्सपीयर के 'रोमियो-जूलियट', 'एज़ यू लाइक इट', 'पेटेव्कीज प्रिंस ऑफ टायर' और 'विंटर्स टेल' नामक प्रसिद्ध नाटकों के आधार पर सेठ जी ने 'सुरेन्द्र-सुंदरी', 'कृष्णकामिनी', 'होनहार' और 'व्यर्थ संदेह' नामक उपन्यासों की रचना की। सेठ जी की साहित्य-यात्रा का प्रारंभ उपन्यास से हुआ। इसी समय उनकी रुचि कविता में बढ़ी। अपने उपन्यासों में तो जगह-जगह उन्होंने काव्य का प्रयोग किया ही, 'वाणासुर-पराभव' नामक काव्य की भी रचना की।
प्रसिद्ध विदेशी नाटककार इब्सन से आप प्रेरित हुए और 1917 में सेठ जी का पहला नाटक 'विश्व प्रेम' छपा। उसका मंचन भी हुआ। उन्होंने नई तकनीक का प्रयोग करते हुए प्रतीक शैली में नाटक लिखे। 'विकास' उनका स्वप्न नाटक है। 'नवरस' उनका नाट्य-रुपक है। हिंदी में 'मोनो ड्रामा' की पहल सेठ जी ने ही की थी।
आप भारतीय संस्कृति के प्रबल अनुरागी तथा हिंदी भाषा के प्रबल पक्षधर थे। हिंदी भाषा की हित-चिंता में तन-मन-धन से संलग्न सेठ गोविंद दास हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अत्यंत सफल सभापति सिद्ध हुए। हिंदी भाषा की हित-चिंता के प्रश्न पर इन्होंने कांग्रेस की नीति से हटकर संसद में दृढ़ता से हिन्दी का पक्ष लिया। उन्हें भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी के समर्थन के लिए जाना जाता है।
सेठ गोविन्द दास न्यूज़ीलैंड में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सम्मेलन (नवंबर 1950) में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने वाले पहले भारतीय नेता थे। आपने अपने न्यूजीलैंड दौरे के बारे में हिंदी में एक किताब भी लिखी थी।
सेठ गोविन्द दास को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1961 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
निधन: सेठ गोविंद दास का निधन 18 जून, 1974 को मुम्बई (महाराष्ट्र) में आपका निधन हो गया।
[भारत-दर्शन]